सास और जमाई की जोड़ी - Ajab gajab kahaniyan


सुनंदा अपने कमरे में बेठी होती है , तभी उसकी पड़ोसन उर्मिला आती है और बोलती है |


उर्मिला ;- सुनंदा , मैं यहाँ एक ही बात को बार बार बोलने नही आने वाली हु , अरे मैं तेरा ही भला चाहती हु , तू कब तक अपनी बेटी और जमाई को घर बैठकर खिलाती रहेगी , अरे अब तो उसे भेज |

सुनंदा :- मेरा जमाई बेटा है , और क्या हो जाएगा अगर वो भी यहाँ हमारे साथ रहने लग गया , हमारे लिए तो अच्छा है ना , मेरी बेटी यहाँ मेरे साथ ही रहेगी , वरना हर कोई इतना खुशनसीब नही होता है |

उर्मिला ;- अरे बात ऐसी नही है सुनंदा , ये घर जमाई कुछ ठीक नही होते है , हम तो इन्हें अपना परिवार मान लेते है , लेकिन ये नही मान पाते है , तुझे पता भी नही चलेगा की कब तेरी नाक के नीचे से तेरे सारे पैसे हड़प लेंगे |

सुनंदा :- मुझे तो ये समझ नही आता की तू मेरे घर जमाई के पीछे हाथ धोकर क्यों पड़ी है , अरे वो इस घर का हिस्सा है हमारा ही परिवार है , और एक तू है की कोई मौका नही छोडती है मेरे जमाई के बारे में कुछ बुरा बोलने से , देख तुझे मेरी चिंता करने की जरूरत नही है , तू बस अपना सोच और ये बता की यहाँ क्यों आई है |


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उर्मिला :- मैं तो यहाँ ये बताने आई हु , की मैं आज किराया नही दे पाउंगी , वो क्या है ना आज कल काम ही नही चल रहा तो कमाई ही नही होती , लेकिन जैसे ही पैसे हो जायेंगे मैं तुझे बराबर पैसे दे दूंगी |

सुनंदा :- लेकिन उस दिन तो देखा था मैंने , तेरी दुकान के बाहर तो बहुत भीड़ थी , और तू ये कह रही है काम नही चल रहा , मुझे तेरी बात और तेरे दूकान के हालत कुछ मिलते जुलते नही लग रहे है |

उर्मिला :- पक्का इस बारे में भी तेरे घर जमाई ने ही तेरे दिमाग में कुछ डाला होगा ना , तू यही सोच रही है की मैं तुझे जान बुझकर ही पैसे नही दे रही है , है ना तुझे यही लगता है ना ?

सुनंदा ;- नही , मैंने ऐसे कब बोला , और इस बात में तू  मेरे जमाई को क्यों बीच में ले आई |

उर्मिला :- मुझे सब पता है , तेरे जमाई को अच्छा नही लगता है की तूने अपने घर का एक कोना मुझे दूकान के लिए किराए पर दिया है , और इसलिए तेरा जमाई तेरे दिमाग में जेहर घोलता है मुझे लेकर |

सुनंदा :- बस कर जा उर्मिला , मेरे जमाई ने आज तक कभी भी मुझे तेरे खिलाफ कुछ नही कहा है , लेकिन तुझे ही शायद मेरा जमाई नही पसंद है इसलिए हर दुसरे दिन तू किसी ना किसी बात को लेकर बोलती है |




उर्मिला :- ठीक है फिर , अगर तुझे मेरा बोलना इतना ही चुभ रहा है , तो अब से मैं कुछ बोलूंगी ही नही , ये तो वही बात हो गयी ना , किसी का भला करने चले , और अपना ही बुरा करवा बेठे , अब तू जान और तेरा घर जमाई जाने , मैं नही बोलने वाली तेरे घर के मामलो में जैसे ही दुकान के पैसे मिल जायेंगे देने आ जाउंगी |


उर्मिला इतना बोलकर वहां से गुस्से में चली जाती है , उर्मिला हमेशा ही सुनंदा को उसके जमाई के खिलाफ बढ़काती रहती थी , सुनंदा को ये सब अच्छा नही लगता था लेकिन वो अपनी पड़ोसन को कुछ नही बोलती है , उर्मिला को बहुत गुस्सा आता है और वो अपने घर जाकर सामान इधर से उधर फेकने लगती है , सामान टूटने की आवाज सुनकर वहां उर्मिला का पति मनोज आता है , और उर्मिला से कहता है |


मनोज :- क्या हुआ उर्मिला , तुम इतने गुस्से में क्यों हो , और घर का सामान क्यों इधर उधर फेक रही हो ?

उर्मिला :- अब और क्या करू मैं , मुझे तो ये समझ नही आ रहा , जब सब कुछ अच्छा ख़ासा चल रहा था तो उस सुनंदा के जमाई को यहाँ आने  की क्या जरूरत थी , और तो और वो अब यहाँ आकर बस ही गया है |



मनोज :- तुम बात करने तो गयी थी ना सुनंदा बहन से , उन्होंने कुछ कहा नही क्या ?

उर्मिला :- कुछ कहना क्या है , मैंने उसे कहा की अपने जमाई को वापस भेज दो , लेकिन उसने तो मुझे ही सुना दिया की मेरा जमाई है तो मैं क्यों बीच में बोल रही हु |

मनोज :- अगर ऐसा ही चलता रहा ना , तो हमे एक दिन अपनी दूकान खाली जरुर करनी पड़ेगी |

उर्मिला :- वही तो , लेकिन समझ ही नही आ रहा की करू तो क्या करू |

मनोज ;- अब तो शायद मुझे ही घर जमाई का कुछ करना पड़ेगा |


मनोज और उर्मिला , सुनंदा के जमाई से बहुत ज्यादा चिढ़ते थे और हर वक्त उसका ही बुरा सोचते रहते थे, एक दिन सुनंदा अपने जमाई अलोक के साथ बाजार जा रही होती है और अपने जमाई से कहती है |


सुनंदा :- इस बार भी अब तक उस उर्मिला और उसके पति ने दूकान का किराया नही दिया है , इनका तो रोज का ही हो गया है , मैं कुछ बोलती नही हु इस बात का ही फायेदा उठाते है ये लोग |

अलोक :- माजी तो आप उनसे दूकान खाली क्यों नही करवाती हो , अरे जब उनका अपना घर है तो आपने उन्हें दूकान दी ही क्यों , वो अपने घर में भी तो दूकान लगा सकते थे ना , अब कैसे ड्रामे करते है |


सुनंदा :- मैंने तो एक अच्छे पडोसी होने का ही फर्ज निभाया था , इन लोगो का बहुत छोटा घर है पहले ही इतनी परेशानी में रहते है , और अब अगर उसमे ही अपनी दूकान खोल लेते तो कितनी दिक्कत हो जाती ना |

अलोक :- माजी आपके इस भोले स्वाभाव का ही इन्होने फायेदा उठाया है |

सुनंदा :- हां ये तो तू बिलकुल सही कह रहा है , इस बार सख्ती से बोल दूंगी की किराया समय से दो , और पूरा दो हर बार किराए में आना कानी करने लग जाते है , लेकिन इस बार कुछ नही सुनूंगी |


अलोक सुनंदा दोनों ऐसे ही बात करते हुए बाज़ार से सब्जियां लेते है और फिर घर चले जाते है , घर जाते है तो दरवाजे पर ही मनोज और उर्मिला खड़े होते है , तभी अलोक कहता है |


अलोक :- नमस्ते , आप लोग यहाँ क्या कर रहे हो , कुछ काम था क्या आपको ?

मनोज :- खैर काम तो कुछ नही था , वो क्या है ना हमारे घर पर आज गाजर का हलवा बना है , तो हमने सोचा की क्यों ना अपने पड़ोसियों के लिए भी लेकर चले |

सुनंदा :- हां तो बाहर क्यों खड़े हो , आओ ना घर के अंदर बैठकर सब एक साथ ही खाते है |


सब लोग अंदर जाते है उर्मिला सबको गाजर का हलवा देने लगती है , और तभी अलोक को देते हुए कहती है |


उर्मिला :- ये लो जमाई राजा , ये हलवा ख़ास आपके लिए ही बनाया है |



अलोक :- ख़ास मेरे लिए क्यों , जहाँ तक मुझे पता है आपको तो मैं कुछ ख़ास लगता भी नही हु ना |

मनोज :- ऐसा नही है , वो तो ये उर्मिला है ही पागल , कुछ भी सोचती रहती है , आप तो बहुत अच्छे इंसान हो , उपर से आप हमारी सुनंदा बहन की जमाई हो तो हमारे भी जमाई हुए ना , मुझे पता चला था की उर्मिला ने आपके बारे में बहुत कुछ बोला है , तो वो सब सुनकर मुझे बहुत बुरा लगा , इसलिए मैंने ख़ास आपके लिए ही हलवा बनाने को कहा है , अब सुनंदा हमारी बहन है तो आप हमारे जमाई हुए ना |

सुनंदा :- देखा अलोक बेटा , मुह से भले ही कड़वा बोलती हो उर्मिला , लेकिन दिल की बहुत साफ़ है , जैसे ही उसे अपनी गलती का एहसास हुआ वो यहाँ माफ़ी मांगने आ गयी और वो भी तेरे लिए हलवा लेकर |

उर्मिला :- अगर जमाई जी मेरे हाथ का हलवा नही खायेंगे , तो मुझे पता चल जाएगा की अब भी ये गुस्सा है और इन्होने मुझे अब तक माफ़ नही किया , इसलिए अगर आप मुझे माफ़ कर रहे हो तो हलवा खाना पड़ेगा |


उर्मिला जबरदस्ती करके सबको हलवा खिला देती है उसके बाद मनोज और उर्मिला दोनों अपने अपने घर चले जाते है अगली सुबह जब सुनंदा की आँख खुलती है तो उसकी तिजोरी खुली होती है और उसमे से पैसे और गहने गायब होते है , उर्मिला बहुत परेशान हो जाती है और चिल्लाती है |


उर्मिला :- हाय मेरे घर में चोरी हो गयी , कोई है यहाँ जल्दी आओ |

उर्मिला की आवाज सुनकर वहां आस पड़ोस के लोग सब आ जाते है लेकिन अलोक नही आता है |

मनोज :- क्या हुआ बहन जी , आपके चिल्लाने की आवाज आई , सब ठीक तो है ना ?

उर्मिला :- कुछ ठीक नही है मनोज भाई , अब क्या बताऊ , मेरे घर में चोरी हो गयी , चोर सब कुछ चोरी करके भगा गया पूरी तिजोरी खाली पड़ी है |

मनोज :- घर में इतना सब हो गया , लेकिन जमाई जी नही दिख रहे , वो कहाँ है ठीक तो है ना वो ?


मनोज यहाँ वहां अलोक को देखने लगता है और जान बुझकर अलोक के कमरे में चला जाता है जहाँ अलोक सोया होता है और वही एक कोने में बहुत सारे पैसे और गहने भी थे , तुरंत मनोज उर्मिला को बुलाता है , और अलोक के मुह पर पानी डालकर उसे उठता है |



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मनोज :- देखा सुनंदा बहन , यहाँ आपका जमाई सो रहा है और सारे पैसे गहने यही मिले , हम आपको पहले ही बोल रहे थे की जमाई ठीक नही लगता है , लेकिन आपने हमारी बात नही मानी |

सुनंदा :- अलोक , मैंने तुझपर आँख बंद करके विश्वास किया था , और तूने मेरे विशवस का ऐसे फायेदा उठाया |

अलोक :- माजी विश्वास का मैंने नही , बल्कि इन लोगो ने फायेदा उठाया है , आपको तो पता ही है कल ये लोग हमारे लिए गाजर का हलवा लेकर आये थे , वो पडोसी होने के नाते नही बल्कि उस हल्व में नींद की दवाई मिलाकर लाये थे और आपके कमरे से सारे गहने पैसे चोरी करके मेरे कमरे में रखे ताकि इल्जाम मुझपर आये |

मनोज :- ये झूठ बोल रहा है , खुद की चोरी पकड़ी गयी तो इल्जाम हम पर लगा रहा है ये |



अलोक :- मैं कोई झूठा इल्जाम नही लगा रहा , बल्कि मुझे तो तुम दोनों की हरकत पर कल रात को ही शक हो गया था इसलिए मैंने आप लोगो के आगे वो हलवा खाने का नाटक किया और रात की चोरी की विडियो बना ली |


मनोज और उर्मिला दोनों घबरा जाते है , क्युकी उनका सच बाहर  आ जाता है , और इसी तरह सुनंदा के बुद्धिमान जमाई की बुधि के आगे सुनंदा के पड़ोसियों की चलाकी काम नही आती | 

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